देश से करें प्रेम

क्यों हालात बिगड़ रहे
इंसान हो रहा अपंग
नासमझी के फेर में
शांति हो रही है भंग

विनय भाव के संग,
आओ करते हैं चयन
जड़ से मिटेगा राग-द्वेष
खुशहाल होगा जीवन

ख़ुशहाल रहेगा जीवन
नया सवेरा आएगा
भोर का उजियारा,
नवल क्रांति लाएगा

राम-कृष्ण की महिमा,
अनगिनत रूप-रंग
दोनों ही कर जोड़कर
करें प्रेम देश के संग

करें प्रेम देश के संग
विद्रोह की भावना से
लोकतंत्र मर्यादा को
मत करो तुम भंग

~ कविता बिष्ट

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