बैंकों की ओर से कर्ज की किस्तों को चुकाने पर दी गई छूट की अवधि में ब्याज की वसूली को सुप्रीम कोर्ट ने गलत करार दिया है। अदालत ने मोराटोरियम की अवधि में लोन के ब्याज पर छूट की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
अदालत ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह ब्याज पर ब्याज वसूलने जैसा है। बैंकों के इस फैसले में कोई मेरिट नहीं है यानी इसे सही नहीं ठहराया जा सकता। यही नही मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में दखल देना चाहिए क्योंकि सब कुछ बैंकों पर ही नहीं छोड़ा जा सकता।
जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जब मोराटोरियम की अवधि तय हो गई है तो फिर उसका मकसद पूरा होना चाहिए। आगरा के रहने वाले गजेंद्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा था कि लोन पर मोराटोरियम की अवधि में ब्याज भी ब्याज की वसूली किया जाना कर्जधारक के लिए मुश्किल भरा होगा।
याचिकाकर्ता ने कहा कि यह जीवन के अधिकार का उल्लंघन करने जैसा है और इससे कर्जधारकों को संकट का सामना करना पड़ेगा। इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान रिजर्व बैंक ने तर्क दिया था कि यदि मोराटोरियम की अवधि में ब्याज पर राहत दी जाती है तो इससे बैंकों की सेहत पर विपरीत असर पड़ेगा।
आरबीआई ने कहा था कि ऐसा करने से लॉन्ग टर्म में बैंकों को नुकसान उठाना पड़ेगा, जो पहले ही दबाव के दौर से गुजर रहे हैं। गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक के आदेश पर देश के सभी बैंकों ने टर्म लोन्स की किस्तें अदा करने पर मार्च से अगस्त तक 6 महीने के लिए राहत दी है।
यदि कोई कर्जधारक इस सुविधा का लाभ लेता है, तब भी मोराटोरियम की अवधि में उसके लोन पर ब्याज देना होगा। मोराटोरियम की अवधि समाप्त होने के बाद ही ग्राहकों को यह ब्याज की रकम चुकानी होगी। इसके अलावा ग्राहक ब्याज की रकम को बकाया किस्तों में भी जुड़वा सकते हैं।
शोभित अग्रवाल
शेयर बाजार विश्लेषक