Mahavir Kaintura: उत्तराखंड के छोटे से गांव से दुनिया के बड़े बिजनेस तक, नाम जो कमाल कर गया

 

आज हम आप का परिचय एक छोटे से गांव से निकल कर डायरेक्ट सेलिंग में पूरे देश में खुद की पहचान बनाने वाले एक खास व्यक्तित्व से करा रहे हैं। महावीर कैंतूरा जिनका जन्म देहरादून जिले के एक छोटे से गांव जोगीवाला माफी में हुआ इनके पिता एक किसान थे और अपने परिवार में वह दो भाई दो बहनों के बाद सबसे छोटे थे।

गरीबी में गुजरा बचपन

ग्रामीण जीवन और गरीबी में इनका बचपन गुजरा । स्रोतों की कमी की वजह से इनके परिवार को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इनका अधिकतर बचपन किताबों को पढ़ने में बीता क्युकी इनको पढ़ने का बहुत शौक था बहुत छोटी उम्र में ही बहुत सारी किताबें जिसमें नैतिक शिक्षा की पुस्तकें, धार्मिक ग्रंथ गीता , रामायण , महाभारत , बाइबिल ,इत्यादि शामिल थीं इनके जीवन में आयी जिनसे इनके मूल्य , और बुनियाद काफी मजबूत हो पाई ।

इनकी पढ़ाई गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई उसके बाद सरकारी इंटर कॉलेज में। बचपन से ही पैसे की कमी होने की वजह से इनके अधिकांश सपने, सपने ही रहे। हालांकि इनके अनुसार यह उनके जीवन के सबसे अच्छे दिन थे क्योंकि रिश्तो को जानने का मौका मिला । अपने पिता और मां से ईमानदारी और जीवन को जीने की नैतिक शिक्षा मिली जो आज भी उनके काम आ रही है। दोनों भाइयों की सेना में जाने के बाद जीवन थोड़ा आसान हुआ।  पढ़ाई में बचपन से अच्छे थे साथ में खेलने का शौक था जिसने इनके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाया ।

घर में छोटा होने की वजह से दोनों बड़ी बहनों राजेश्वरी देवी और पूनम का इनको बहुत प्रेम मिला उनके दोनों  भाई मोहित एवम् सोबन कैंतुरा ने ना केवल इनको समय समय पर प्रेरित किया बल्कि समय-समय पर कई मोटिवेशनल किताबे देते रहते थे।

 

ओम स्टार क्लब का गठन

अपने स्कूल के दिनों में अपने साथियों के साथ ओम स्टार क्लब का गठन किया जिसके द्वारा इन्होंने कई क्रिकेट टूर्नामेंट खेले एवं समय-समय पर कई सांस्कृतिक कार्य अपने क्लब के सदस्यों के साथ मिलकर किए। क्योंकि बचपन में स्रोत नहीं थे तो पूरी ओम स्टार क्लब की जो टीम थी वे श्रमिक के रूप में या अलग अलग काम करके पैसे इकट्ठे करते थे अपने अलग-अलग चीजों से पैसे बचाकर खेलने का सामान लाया करते थे । इनके ओम स्टार क्लब द्वारा लगातार 14 वर्षों तक भगवान श्री राम जीवन लीला का मंचन भी किया गया ।

 

किताबो का शौक

महावीर जी के अनुसार उनकी किताबो को पढ़ने के शौक ,  खेलो और सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने उनके अंदर की नेतृत्व क्षमता को विकसित किया और हर किसी व्यक्ति को खेलों में, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जरूर भाग लेना चाहिए । अपने स्कूल के दिनों में ही उन्होंने घर में प्रोढ शिक्षा की शुरुआत कर अपने गांव की बुजुर्ग  महिलाओं को पढ़ाने का भी एक मिशन शुरू किया । खेलों के विकास के लिए समय-समय पर बहुत सारे टूर्नामेंट्स यह आयोजित करते रहे।

 

कॉलेज लाइफ

कॉलेज लाइफ में पहुंचने के बाद जब इन्होंने ग्रेजुएशन की उस दौरान उन्होंने देखा कि जो इनके सीनियर है वह साइंस के विद्यार्थी होते हुए भी कभी बैंक पीओ, कभी नाविक, कभी फोर्थ ग्रेड तक के फॉर्म भर रहे है जो इनके हिसाब से चौंकाने वाला था । जीवन में लक्ष्यों की स्पष्टता का ना होने का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता था ।  इस दौरान उन्होंने फैकल्टी के बहुत सारी क्विज प्रतियोगिताओं में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और पुरस्कार जीते।  कॉलेज में शतरंज के लिए चयनित हुए और एक बार कप्तान भी रहे। कॉलेज में भी उनका अधिकतम समय लाइब्रेरी , खेलो और पढ़ाई में ही गुजरता था ।

 

डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री में रखा कदम

2004 में एमएससी प्रथम आने पर इनके सामने रोजगार के काफी अवसर इनको दिखाई दिए । लेकिन इसी समय इनको डायरेक्ट सेलिंग नेटवर्क मार्केटिंग इंडस्ट्री को भी जानने का मौका मिला।

2002 में भी इनके जीवन में नेटवर्क मार्केटिंग का एक प्रस्ताव आया था जिसको सुनने के बाद यह बहुत उत्साहित थे लेकिन कुछ लोगों से जब इन्होंने बात की और उनके नकारात्मक अनुभव इनको मिले तो इन्होंने उसको नजरअंदाज कर दिया । और उसके बाद यह लगातार इससे दूर भाग रहे थे लेकिन 2004 में एक बहुत बड़ी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर के द्वारा जब इनके सामने यह प्रस्ताव आया तो इन्होंने इसको बहुत नजदीक से जाना।

 

टीम वर्क में काम करना, नेतृत्व करना, टीम में जब सफलता मिलती है उसकी खुशी क्या होती है ? यह जानते हुए इन्हें लगा यह एक ऐसा अवसर है जिससे न केवल अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं बल्कि जिन परिवारों के जीवन में दिक्कतें हैं मुश्किलें हैं स्रोत नहीं है उनके लिए भी रोजगार के अवसर खड़े किए जा सकते हैं। नेटवर्क मार्केटिंग बिजनेस में सफलता इनके लिए आसान नहीं रही क्योंकि शुरुआत में ना इन के पास बिजनेस करने के पैसे थे । ना मोटरसाइकिल थी ।ना ही मोबाइल फोन और ना ही लोग जिनसे यह बिजनेस को शेयर  कर पाते । घर वालो ने साफ मना कर दिया था की वो इस बिजनेस के लिए कोई सहयोग नहीं करेंगे ।इनके पूरे गांव में किसी ने भी इस तरह के काम कोई सफलता नहीं हासिल कर पाया था । विज्ञान के छात्र होने के कारण ज्यादा दोस्त भी नहीं थे । और संवाद कौशल भी बहुत कमजोर था। ऊपर से कुछ ही हफ्तों में इनको शुरू कराने वाले अपलाइन भी बिजनेस छोड़ गए थे। इन्होंने शुरुआती दिनों में यहां पर भी कम्पनी की सारी लिट्रेचर और नेटवर्क मार्केटिंग पर लिखी गई देश विदेश के तमाम लेखकों की तमाम किताबे इन्होंने पढ़ डाली जिनसे इनको दिशा मिली और ये लगातार प्रयास करते रहे ।

 

सफलता में इनकी पत्नी के सहयोग:

इनकी धर्मपत्नी सोनम से इनकी मुलाकात 2006 में हुई जो हिंदुस्तान लीवर में इनकी टीम में थी। यह इनके जीवन का मुश्किल समय था लेकिन फिर भी दोनों ने साथ जीवन बिताने का फैसला किया कई उतार-चढ़ाव के बावजूद दोनों ने अपने रिश्ते को ईमानदारी से निभाया और मई 2010 में इनका विवाह हुआ। इनकी सफलता में इनकी पत्नी के बड़े सपनों और उनके सहयोग का बहुत बड़ा हाथ रहा ।

अपनी जिद की वजह से टिके रहे

इन्होंने बिजनेस में एक टाइटल को पाने का लक्ष्य रखा जिसको 14 महीने तक ये हासिल नहीं कर पाए लेकिन अपनी जिद की वजह से टिके रहे । आखिरकार इन्होंने वो लक्ष्य हासिल किया । पहले साल तय की गई तारीख 29 जून को मोटर साइकिल लेनी हो या फिर देश विदेश की यात्राएं या फिर पहली कार । लक्ष्य चुनना उसके लिए पागलों की तरह मेहनत करके उसे हासिल करना इनकी आदत का एक हिस्सा था।

 

अपने शुरुआती दिनों में इनको अपलाइन विनोद कुमार शर्मा जी से डायरेक्ट सेलिंग को जानने का मौका मिला लेकिन उनके भी छोड़ जाने के बाद इन्होंने उस कम्पनी के सफलतम लीडर अमिताभ वालिया जी को अपना मेंटर बनाया जिनके साथ आज भी लगातार आगे बढ़ रहे है ।

 

लगातार मीटिंग ट्रेनिंग में जाते रहने से लगातार सीखने की ललक और कठिन संघर्ष के बाद इन्होंने सफलता लेनी शुरू की 2007 में इन्हें विदेश यात्रा करने का भी मौका मिला।

 

2007 में जीवन का मकसद लिखा

2007 में एक पूरे दिन की लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम में बैठकर इन्होंने अपने जीवन का मकसद लिखा जिसके लिए आज भी यह अपनी पूरी टीम के साथ प्रयासरत हैं और वह मकसद था 15 अगस्त 2038 तक 10 लाख लोगों के जीवन में मुस्कुराहट लाना उनको आर्थिक रूप से सक्षम बना कर। इनके अनुसार डायरेक्ट सेलिंग में काम शुरू करके इन्होंने अपने देश के लिए खुद कोई जॉब ना करके 1 रोजगार पैदा किया । और अब तक ये अपनी टीम के साथ मिलकर हजारों रोजगार पैदा कर चुके है ।

 

9 सितंबर 2007 को एक एक्सीडेंट की वजह से जब इन्हें घर पर रहना पड़ा और उन्होंने बहुत नजदीक से देखा कि कैसे जिस काम को यह कह रहे थे उसमें फाइनेंसियल फ्रीडम या निष्क्रिय आमदनी की संभावनाएं काफी कम है। हालांकि आज भी वो हिंदुस्तान यूनिलीवर के एजुकेशन सिस्टम को लेकर अहसानमंद है जिससे इनको व्यवसायिक समझ मिली। उसके बाद इन्होंने खुद के ट्रेडिशनल बिजनेस शुरू किए जिसमें रिलायंस और टाटा ए आई जी लाइफ इंश्योरेंस , मुचल फंड कोचिंग इंस्टिट्यूट इत्यादि जिसमें इनको बहुत सफलता मिली लेकिन वह वन मिलियन स्माइल्स का जो लक्ष्य था वह कहीं दूर होता दिखाई दे रहा था। क्योंकि वहां पर व्यक्तिगत रूप से तो ये अच्छी आमदनी कर पा रहे थे लेकिन लाखो जीवन में रोजगार की संभावना दूर दूर तक नहीं थी ।

 

वैलनेस इंडस्ट्री के महत्व जाना

2009 में इनकी माताजी की ऊंचाई से गिरने की वजह से गंभीर चोटे आई और उनको हॉस्पिटल में भर्ती रहना पड़ा। इस दौरान इन्होंने स्वास्थ्य और वैलनेस इंडस्ट्री के महत्व को बहुत नजदीक से जाना। अपनी मां को वेलसाइंस के कुछ आयुर्वेदिक और वैलनेस प्रोडक्ट इस्तेमाल कराएं जिससे उनको दवाइयों के साथ लेने पर बहुत फायदा हुआ । इनकी मा को एक नया जीवन मिल पाया । यह बहुत सुकून देने वाला था और आयुर्वेद से ये हमेशा से बहुत प्रेरित थे और इनको लगा की वैलनेस का जो ज्ञान हैं वो सब तक पहुंचना  बहुत जरूरी है साथ ही इनको दिखाई दिया कि यहां पर वो जो वन मिलियन स्माइल्स का मकसद है वह भी पूरा हो सकता हैं।

 

दोबारा से डायरेक्ट सेलिंग बिजनेस में कदम रखा

इनके इंश्योरेश के साथियों एवम् शीर्ष अधिकरियों को ये बेवकूफी भरा निर्णय लगा क्युकी ये सालाना काफी अच्छी आमदनी कर रहे थे लेकिन अपनी जिद, और लगातार सीखते रहने की वजह से जल्दी ही इन्होंने अपने बिजनेस को तेजी से बढ़ाना शुरू कर दिया ।

 

वैल्साइंस की यात्रा

2009 में वैलसाइंस के साथ इन्होंने काम करना शुरू किया। हालांकि 2009 में लोगों को फ्री रेडिकल , एंटी ऑक्सीडेंट, सप्लीमेंट समझाना थोड़ा मुश्किल था लेकिन लगातार वीकली मीटिंग के द्वारा, साथ में स्टार ट्रेनर प्रोग्राम  और शंखनाद प्रोग्राम के द्वारा टीम को यह साथ में जोड़ पाए। वैल्साइंस मे इनको वैलनेस इंडस्ट्री को बहुत नजदीक से जानने का मौका मिला । वैल्साइंस में रहते हुए इन्हें आयुर्वेदग्राम बेंगलुरु में आयुर्वेदा के बेसिक्स कोर्स द्वारा इसको समझने का,  वहां पर रिसर्च साइंटिस्ट से आयुर्वेदा की बारीकियों को जानने का मौका मिला। वैल्साइंस के दौरान इनको श्री लाजिंदर बावाजी और रथिन माथुर ,जैसे डायरेक्ट सेलिंग के अनुभवी लोगों से सीखने का मौका मिला साथ ही कई अनुभवी ट्रेनरों एवम् वैज्ञानिकों से भी सीखने का मौका मिलता रहा। वैल्साइंस में भी इन्होंने काफी सफलता ली कई ट्रिप्स की ।

 

वैल्साइंस की यात्रा में कुछ खास लोगों की अगर बात ना की जाए तो शायद यह यात्रा अधूरी रहेगी इसमें  इनका साथ दिया उनके खास दोस्त रुपेश थलवाल, उदीना नेगी जी,  संगीता भंडारी जी , रवि प्रकाश जी , गोपाल रावल,  रेवती रमन वर्मा ,सुशील असवाल, रेणु रौतेला जी, मीनाक्षी पोखरियाल श्रीराम , योगेंद्र राठौर , दुलीचंद योगी जी, विनय चौधरी जी, प्रीति अस्थाना, कुलदीप बिवाल जी, Dr अखिल गुप्ता , Dr विनय कुमार, विकास , प्रेम महेन्द्रू, बालेंद्रा नेगी, मुकेश तिवारी, अनुपम शर्मा , दयाराम जोशी , अनिल गहलोत और इनकी टीम ने । इन लोगों का इनकी लीडरशिप में जो विश्वाश था उसकी वजह से ही ये एक लंबे समय अपने मिशन को आगे बढ़ा पाए ।

 

इनकी टीम में ज्यादातर लोग पहली बार डायरेक्ट सेलिंग कर रहे थे इस वजह से सब को लीडर बनाने में काफी समय लगा लेकिन एक बार जब वह मजबूती से बन गए तो उन्होंने बहुत मजबूती से अपने आप को आगे बढ़ाया।

 

2017 तक केवल 14 वैलनेस प्रोडक्ट के साथ काम करते हुए इन्होंने भारत के कुछ शहरों में नेटवर्क बनाया । यहां पर भी इनको विदेश यात्रा के साथ साथ भारत में कई खूबसूरत यात्राए करने का मौका मिला और इन्होंने कंपनी में टॉप अचीवर का स्थान भी हासिल किया ।

 

जब वीएलसीसी डायरेक्ट सेलिंग में आई

2 जून 2017 को जब वीएलसीसी डायरेक्ट सेलिंग में आई तो उसने वैल्साइंस को टेकओवर किया। क्योंकि वीएलसीसी एक ग्लोबल ब्रांड था। एक बार फिर नयी प्रतिस्पर्धा, फिर नए लक्ष्य।

 

कठिन परिश्रम वीएलसीसी वैल्साइंस के साथ किया तो इनको सफलता मिलनी शुरू हो गई और बहुत ही कम समय में पूरे भारत में यह अपना नेटवर्क फैलाने में कामयाब रहे।

 

करियर के शुरुआती 6 महीने में इन्होंने हर रोज 100 से ज्यादा  लोगो से बात करना शुरू किया । इनको मालूम था कि इनको बाकी सब लोगों से ज्यादा बार असफल होना है । महीने में 20 दिन से ज्यादा की ट्रैवलिंग , रोज सुबह से लेकर शाम तक टेलीफोन कॉलिंग,  काउंसलिंग, मीटिंग इन सब का नतीजा था कि इन्होंने वीएलसीसी वैल्साइंस का उच्चतम लेवल हासिल किया।

वी एल सी सी लांच होने के बाद इन्होंने  कुछ और नए लीडर्स के साथ बिजनेस को बढ़ाया जिसमें राकेश रमोला जी, गौरव जेठूडी जी, पराग एवम् कविता बाली जी,  विकास स्वर्णकार जी, सुनील शर्मा जी, देवेन्द्र राठौर जी, लक्ष्मी पुंडीर जी, अनिल राणा जी,  संजय कुंडलियां जी, संजीव शॉ जी, सत्यब्रता चैटर्जी जी संदीप कुमार जी, रेणु भंडारी जी,सुवर्णा जी, पुरुषोत्तम कुमार एवम् अनिल कुमार जी , वागीश जी, मोहन जी, अशीम और अशिब, संगीता असवाल, शुशीला नेगी, विशाल गौरव, संदीप कुमार, सुशील कुमार ठाकुर, नितिन, अरविंद शर्मा एवम् इनकी टीम इत्यादि थे।

 

उसके बाद कंपनी ने एक और उच्चतम लेवल रखा जिसको भी इन्होंने हासिल किया । कंपनी के साथ आगरा, थाईलैंड , जोधपुर गोवा  एवं क्रूज़ की यात्रा टीम सहित यह कर चुके हैं ।और अभी दुबई मलेशिया अल्माटी जैसी यात्राओं पर जाना बाकी है ।

 

 

 

हर ट्रिप और आर टी पी के बाद बिजनेस में बहुत उछाल इन्होंने महसूस किया ।

 

कोर वैल्यू और कार्डिनल रुल

इन्होंने बिजनेस को हमेशा कोर वैल्यू और कार्डिनल रुल पे विकसित किया ।अपने पूरे कैरियर में एक भी मीटिंग को ना मिस करना अपने प्रोडक्ट का शत प्रतिशत इस्तेमाल करना, लगातार नए ग्राहक और व्यवसायिक साझेदार बनाते रहना।

 

कोर टीम चुनते समय इन्होंने हमेशा सही चरित्र इमानदारी और मूल्यों वाले लोगों का चुनाव किया इनके हिसाब से क्लास हमेशा रहती है फॉर्म हो सकता कभी रहे कभी ना रहे। इनके और उनकी टीम के मजबूत वैल्यू एवम् उसकी वजह से महिलाएं एवं सभी टीम मेंबर अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पाए लगातार परिवारिक माहौल में रहकर बिजनेस को आगे बढ़ा पाए यह कुछ भी नया करने से पहले अपने  मेंटर और कोर टीम की सलाह लेकर ही काम करते रहे जिसको इन की टीम ने बखूबी डुप्लीकेट किया।

डॉक्टर वंदना लूथरा जी के हाथों सम्मानित

 

2017 लॉन्चिंग में इनको वीएलसीसी निदेशक संदीप आहूजा जी एवं लजिंदर बावा जी के हाथों ढाई लाख से अधिक के चेक द्वारा सम्मानित किया गया। अगले वर्ष लीजेंडरी पदम श्री डॉक्टर वंदना लूथरा जी के हाथों 800000 के चेक से सम्मानित किया गया । यह उनके जीवन के खास क्षणों में से एक था क्योंकि उस दौरान जब ये चेक ले रहे थे तो इनके साथ इनकी माताजी इनके बड़े भाई श्री सोबन सिंह कैंतूरा इनकी धर्मपत्नी सोनम  एवं इनकी छोटी बेटी सात्विकी भी मंच पर थी।

हर महीने भारत के अलग-अलग हिस्सों में जाकर इन्होंने लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम, शंखनाद श्रृंखला द्वारा अपनी टीमों को जोड़े रखा।

टॉप अर्नर अवार्ड

समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते रहे लेकिन शंखनाद प्रोग्राम के द्वारा , अपनी कड़ी मेहनत और कोर टीम के सहयोग से यह लगातार आगे बढ़ते रहें । एक बड़ा मौका इनको तब मिला जब वीएलसीसी ने ग्लोबली अपनी सालगिरह में टॉप अर्नर अवार्ड से इनको एवं उनकी टीम के 9 सदस्यों को सम्मानित किया यह एक बहुत ही गौरवपूर्ण क्षण थे क्योंकि वहां पर इंडिया टीवी के चेयरमैन रजत शर्मा जी , वंदना लूथरा जी एवम् मुकेश लूथरा जी भी मौजूद थे इस प्रोग्राम में सोनम जी , रूपेश थलवाल जी, उदीना नेगी जी, राकेश रमोला जी, कविता बाली जी, संगीता भंडारी जी सुनील शर्मा जी गोपाल रावल जी लक्ष्मी पुंडीर जी भी शामिल रही।

लीजेंडरी क्रिकेटर कपिल देव जी से सम्मानित

अक्टूबर में एक बार फिर से इनके जीवन में बहुत बड़ा मौका आया जब इनको और उनकी टीम के लीडर्स को लीजेंडरी क्रिकेटर कपिल देव जी एवं वंदना लूथरा जी के हाथों से सम्मानित होने का मौका मिला।

 

अपनी कड़ी मेहनत से न केवल यह आज खुद की आमदनी बढ़ा रहे हैं बल्कि हर महीने जीएसटी एवं सालाना ब्रॉन्ज कैटेगरी में टैक्स  पे  करके देश के विकास में भी भागीदारी निभा रहे हैं। समय-समय पर कई सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हुए यह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियां निभाते रहते हैं।

 

 

कोरोना संकट में 4 सूत्रीय कार्यक्रम

वर्तमान में कोरोना संकट को देखते हुए इन्होंने और इनकी पूरी टीम ने 4 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया हुआ है जिसमें यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी बेसहारा भूखा ना रहे।  जो कोरोना वायरस की लड़ाई में लगातार कार्य कर रहे हैं उन तक निशुल्क इम्यूनिटी सप्लीमेंट एवम् सेनीटाइजर पहुंचाकर यह उनका हौसला बढ़ा रहे है। साथ ही अलग अलग मंच द्वारा लोगों को जागरुक कर पा रहे हैं तथा आर्थिक मदद पहुंचा रहे है । ग्रामीण जीवन में पूरे गांव के साथ सब मिलकर कार्य करते थे पूरा गांव एक परिवार के रूप में एक दूसरे के काम आता कि इनके जीवन के सबसे यादगार पल थे आज भी अपनी पूरी टीम को इसी तरीके से जोड़ने का प्रयास कर रहे है।

 

इनकी और इनकी माय वन मिलियन स्माइल टीम की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि यह लोकडाउन में भी रोज 3-3 ऑनलाइन मीटिंग प्रोग्राम करते हुए अपनी टीम को सिखा पा रहे है ।

 

सफलता के सूत्र

अपनी सफलताओं के सूत्रों के बारे में बात करते हुए यह बताते हैं की परिस्थितियों  पर निर्भर होने की बजाय हर क्षण यह सोचना कि हम क्या नया कर सकते हैं ?क्या बेहतर कर सकते हैं ? कैसे सर्वश्रेष्ठ परिणाम पा सकते हैं?  इनको सफल होने में मदद करता है। लगातार सीखते रहना और आज भी सालाना लाखों रुपए यह अपने और अपनी टीम की ट्रेनिंग में निवेश करते हैं।  अपने मकसद को विजुलाइज  कर हर रोज कदम बढ़ाना, उसी हिसाब से अपनी प्राथमिकताएं सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण है कि जो बदले में मिल रहा है उससे कई गुना अधिक देने का नजरिया। दूसरों की जगह खुद को रख कर फैसले लेने की आदत ने इनकी सफलता को हासिल करने में इनकी काफी मदद की है।

 

आवश्यकतानुसार ऑफलाइन से ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम को इन्होंने बहुत मजबूती से डेवलप किया है ।आज इनके फेसबुक पेज पर 25000 से अधिक फॉलोवर है । यूट्यूब पर 350 से अधिक ट्रेंनिग विडियोज के साथ 6000नेचुरल सब्सक्राइबर है ।

 

सफलता का श्रेय

यह अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता पिता , भगवान पर इनका अटूट विश्वास , अपने संयुक्त परिवार को जिसकी वजह से ज्यादा एकाग्रता से काम कर पाए , अपनी जीवनसंगिनी सोनम कैंतूरा को जिन्होंने हर पल इनका पूरा साथ दिया, अपनी कोर टीम को , साथ ही यह अपने सभी गुरुजनों जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा उनका भी धन्यवाद करते हैं । खासकर अमिताभ वालिया जी का जो इनके मेंटर रहे है जिनसे इन्होंने समय-समय मे बहुत कुछ सीखा है।

 

यात्रा जारी है  कठिन प्रयास चल रहे हैं ।रोज हर क्षण नया बेहतर और सर्वश्रेष्ठ क्या किया जाए?  इस सोच के साथ यह अपने जीवन के मिशन 1000000 मुस्कुराहटों को पूरा करने में अपनी टीम के साथ लगे हुए हैं। और हम ईश्वर से कामना करते हैं कि यह अपने लक्ष्यों को हासिल करें और भारत को एक समृद्ध और खुशहाल राष्ट्र बनाने में अपनी एक छोटी सी भूमिका अदा करें।

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