आरबीआई ने इस बात को संज्ञान में लिया है कि विभिन्न मार्केट मानकों के आधार पर देखने पर ये साफ होता है कि एनबीएफसी कंपनीयों के लिए कोविड 19 के आउटब्रेक के बाद स्थितियां खराब हुई हैं। लोअर रेटेड और प्राइवेट सेक्टर की एनबीएफसी कंपनियों के लिए स्थितियां और खराब हुई हैं।
बुधवार को प्रकाशित अपने मासिक बुलेटिन के एक लेख में आरबीआई ने कहा है कि हालांकि आरबीआई द्वारा अभी तक किए गए रेग्यूलेटरी और लिक्विडिटी बढ़ाने के उपायों का फाइनेंशियल मार्केट पर अच्छा असर दिखा है लेकिन बाजार के कुछ क्षेत्रों पर अभी दबाव देखने को मिल रहा है।
इस लेख में आगे कहा गया है कि हाल ही में सरकार द्वारा एनबीएफसी कंपनियों के लिए किए गए स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम और पार्सियल क्रेडिट गारंटी स्कीम जैसे उपायों से भी एनबीएफसी कंपनियों की स्थिति में सुधार की उम्मीद है।
COVID-19 संकट को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने हाल ही में बाजार में लिक्विडिटी बनाए रखने के लिए कई उपाय किए हैं जिनमें टार्गेटेड लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन (TLTRO) और बैंकों के लिए स्पेशल लिक्विडिटी विन्डों जैसे उपाय शामिल हैं।
बैंक इन स्पेशल लिक्विडिटी विन्डो के जरिए म्यूचुअल फंड और माइक्रो फाइनेंस कंपनियों को कर्ज दे सकते हैं। इसके अलावा आरबीआई ने COVID-19 की वजह से आमदनी के स्रोत बंद होने के कारण कर्ज लेने वालों को लोन डिफॉल्ट करने से बचाने के लिए 6 महीने के लोन मोरेटोरियम का भी एलान किया है।
सरकार ने भी माइक्रो, स्मॉल, मीडियम,
एमएफआई और दूसरे एनबीएफसी को राहत पहुंचाने के लिए कई स्कीमों का एलान किया है। इसमें 3 लाख करोड़ रुपये का MSME, इमरेंजी क्रेडिट गारंटी स्कीम, 2 लाख करोड़ रुपये का किसानों के लिए concessional क्रेडिट स्कीम और एनबीएफसी के लिए 75000 करोड़ रुपये की लिक्विडीटी स्कीम शामिल है।
आरबीआई की इस बुलेटिन में आगे कहा गया है कि फाइनेंशियल बाजार की स्थिति को सुधारने के लिए हमें लिक्विडीटी से संबंधित उपायों के अलावा हमें दूसरे नीतिगत सुधार करने पड़ेंगे। एनबीएफसी कंपनियों की स्थिति को सुधारने के लिए हमें नीतिगत उपायों के जरिए क्रेडिट की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
शोभित अग्रवाल
शेयर बाजार विश्लेषक