ग्रे मार्केट में आधी कीमत पर भी यस बैंक के शेयरों के खरीदार नहीं मिल रहे ,

यस बैंक अपने फॉलो-ऑन ऑफर (एफपीओ) के जरिए 15,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी में है. उसने इश्यू के लिए प्रति शेयर 12 रुपये का फ्लोर प्राइस तय किया है. यह शेयर के मौजूदा भाव की तुलना में करीब 40-45 फीसदी डिस्काउंट है. इसके बावजूद ग्रे मार्केट (गैर-सूचीबद्ध बाजार) में इस शेयर के खरीदार नहीं हैं. यस बैंक प्राइवेट बैंक है.

आम तौर पर एफपीओ में 40-45 फीसदी का डिस्काउंट काफी आकर्षक माना जाता है. मगर गैर-सूचीबद्ध बाजार यस बैंक के शेयर की कुछ अलग ही कहानी है. इस एफपीओ का प्रीमियम महज 0.70 से 0.75 रुपये प्रति शेयर है, जो फ्लोर प्राइस का महज 5-6 फीसदी ही है.

बीते सप्ताह, जब एफपीओ को ऐलान हुआ था, प्रीमियम 1.15 से 1.125 रुपये था. मगर फ्लोर प्राइस सामने आने के बाद यह आधा रह गया. गैर-सूचीबद्ध बाजार के डीलर्स के अनुसार, इस एफपीओ का प्रीमियम कम होने की कई बड़ी वजहें हैं.

इन्वेस्टमेंट डॉक्टर्स के शोभित अग्रवाल ने कहा, “इस एफपीओ का आकार काफी बड़ा है. यह किसी मिडकैप कंपनी के समान है. ऐसे में इश्यू के कई गुना सब्सक्राइब होने की कम ही उम्मीद है. एफपीओ में शेयर मिलने के आसार काफी बढ़िया हैं. ऐसे में कोई ग्रे बाजार में क्यों प्रीमियम चुकाएगा.”

हालांकि डीलर्स का मानना है इस इश्यू को आसानी से पूरा सब्सक्रिप्शन मिल जाएगा क्योंकि अभी बाजार में लिक्विडिटी काफी अधिक है और रातोंरात अमीर बनने का सपना देखने वाले निवेशकों की नई खेप सस्ते शेयरों में पैसा लगा रही है.

अग्रवाल ने कहा, “इसका आकर्षण कम है. यह आईपीओ नहीं, बल्कि एफपीओ है. इसमें कोई प्राइस डिस्कवरी नही है. लिस्टिंग भी मौजूदा भाव के आसपास ही मिलेगी. निवेशकों को जोखिम और रिटर्न के बारे में भी पता है. ऐसे में निवेशकों की दिलचस्पी सीमित रहने की उम्मीद है.”

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 6 मार्च 2020 को यस बैंक पर मोरेटोरियम लगा दिया था, जिसे 18 मार्च को हटाया गया था. तब संकट में फंसा यह बैंक पुनर्गठन की योजना लेकर पेश हुआ था. इसके बाद रिजर्व बैंक ने रवनीत गिल को हटाकर यस बैंक की कमान प्रशांत कुमार के हाथ में दे दी थी.

भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और बंधन बैंक ने यस बैंक की मदद की और इसमें 10,000 करोड़ रुपये का निवेश किया. एसबीआई के पास यस बैंक की 49 फीसदी हिस्सेदारी है.

हालांकि, नई पुनर्गठन योजना के तहत यस बैंक के मौजूदा शेयरधारकों के तीन चौथाई शेयर तीन साल के लिए लॉक-इन हो गए. इस वजह से बैंक के शेयरों की लिक्विडिटी भी कम हो गई है. बाजार के जानकारों का मानना है कि इस एफपीओ से शेयर बाजार में बैंक की लिक्विडिटी बढ़ेगी.

कोरोना वायरस की महामारी के असर को देखते हुए ज्यादातर बैंक पूंजी जुटाने पर जोर दे रहे है. रिजर्व बैंक ने ईएमआई के लिए तीन महीने का मोरेटोरियम दिया था, जिससे उनकी लोन बुक्स पर दबाव बढ़ने के आसार हैं.

इंदिरा सेक्युरिटी के बाजार के रिसर्च हेड राधेश्याम चौहान ने कहा कोरोना वायरस के चलते तमाम बैंकों को फंडों की जरूरत है. उन्होंने कहा, “यस बैंक के लिए एफपीओ ही सबसे बढ़िया विकल्प है क्योंकि इसे बाजार से मोटी रकम जुटानी है.”

राधेश्याम ने कहा, “यस बैंक की लोन बुक की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, मगर हमारा मानना है कि इसका सबसे बुरा दौर बीत चुका है. यदि एनपीए तेजी से नहीं बढ़ा, तो यह एक बढ़िया दांव हो सकता है.” उनके अनुसार, बड़ी संख्या में शेयर खरीदने वाले निवेशकों को इसका रुख करना चाहिए.

शोभित अग्रवाल
शेयर बाजार विश्लेषक

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