जहां एक और पूरे विश्व को आर्थिक मंदी की चिंताओं ने घेरा हुआ है। वही एक और एक ऐसा उद्योग भी है जो आर्थिक मंदी के इस दौर में भी भविष्य में अपना उज्जवल भविष्य देख रहा है। जी हां! डायरेक्ट सेलिंग उद्योग आर्थिक मंदी के इस दौर में भी असीमित संभावनाओं के साथ उभरने को तत्पर है। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाला समय वर्क फ्रॉम होम की तर्ज में कार्य करने को प्रेरित करेगा जो कि किसी हद तक डायरेक्ट सेलिंग के जरिए भी किया जा सकता है। विशेषकर भारत में यह उद्योग तेजी से उभर रहा है और भारत सरकार द्वारा इस उद्योग के लिए वर्ष 2016 में विशेष गाइडलाइन भी बना दी गई है।
जानकारी के मुताबिक 2015-16 में भारत में इस क्षेत्र का कारोबार 8,308 करोड़ रुपए था जो साल दर साल औसतन 16 प्रतिशत की दर से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 13,080 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर डायरेक्ट सेलिंग उद्योग वर्ष 2018 में लगभग 192.9 अरब डॉलर का था, जो कि वर्ष 2017 में 190.5 अरब डॉलर के उद्योग मूल्य से 1.2 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
इंडियन डायरेक्ट सेलिंग एसोसिएशन के प्रमुख चेतन भारद्वाज के अनुसार डायरेक्ट सेलिंग उद्योग पिछले चार वर्षों में 16% का कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) देख रहा है। लगभग 5.7 मिलियन डायरेक्ट सेलर के साथ उद्योग का आकार 13,000 करोड़ रुपये से अधिक है। “डायरेक्ट सेलिंग एक ऐसा सेक्टर है जो आर्थिक मंदी के दौरान भी बढ़ता है। चूंकि किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष बिक्री में शामिल होने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए मंदी के दौरान अधिक लोग इस उद्योग में आते हैं। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ डायरेक्ट सेलिंग उद्योग करने के लिए भी नए नियम बनाने की आवश्यकता पड़ सकती है।
वैलनेस इंडस्ट्री विशेषज्ञों के अनुसार राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान उपभोक्ताओं के रुख में बदलाव आया है। अब उपभोक्ता प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले और पोषक उत्पादों की खरीद कर रहे हैं। एक एक्सपर्ट के अनुसार ‘‘अब लोग अपनी देखभाल की दृष्टि से खरीदारी कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान एक और खास बदलाव देखने में आया है कि लोग अस्पताल नहीं जाना चाहते। पहले लोग कुछ भी होने पर चिकित्सक के पास जाते थे। अब लोग पहले से बचाव करना चाहते हैं।