न्यायालय की ओर से याचिका पर शहरी विकास व स्वास्थ्य सचिव से रिपोर्ट मांगी गयी। देहरादून निवासी अधिवक्ता अभिजय नेगी ने जनहित याचिका दायर की थी। कहा गया था कि अधिनियम के प्रावधान का प्रचार प्रसार करके कोर्ट को अवगत कराएं। 22 मई को सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को अधिनियम के प्राविधानों के बारे मे अवगत कराया।
कूड़ा फेंकना और थूकना प्रतिषेध अधिनियम 2016 को कड़ाई से लागू करने के निर्देश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार एवं शहरी स्थानीय निकायों को दिए हैं। कोर्ट ने दो सप्ताह में मामले में फैसला देकर मिसाल कायम की है।
कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार केवल पत्राचार से अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकती और उसको इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के पालन पर भी अपना ध्यान आकर्षित करना होगा। 26 मई 2020 को सभी नगर निकायों के अधिकारियों को अधिनियम को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिए गए।
याचिकाकर्ता की प्रार्थना स्वीकार करते हुए न्यायालय ने यह माना है कि इस अधिनियम को सख्ती से लागू करके कोरोना वायरस जैसी महामारी से उत्तराखंड में बचाव संभव है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा है कि अगर इस निर्णय के बाद भी राज्य सरकार या स्थानीय नगर निकायों द्वारा अधिनियम को लागू नहीं किया जाता है तो वह फिर न्यायालय को अवगत करा सकते हैं।
उत्तराखंड में इस अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि थूकना और कूड़ा फैलाने के फलस्वरूप 5000 रुपये तक का जुर्माना, रोजना हो रहे कूड़ा फेंकने की गतिविधियों पर 500 रुपये तक का जुर्माना और थूकने पर भी इसी तरह की कार्यवाही का प्रावधान है। दोष सिद्ध होेने पर जेल भी जाना पड़ सकता है।
देहरादून में पर्यावरण संरक्षण पर काम कर रहे युवाओं के संगठन मैड संस्था द्वारा सूचना के अधिकार के माध्यम से पूछा गया कि 2016 से 2019 तक इस अधिनियम के तहत कितने चालान हुए, तो संस्था सदस्य आदर्श त्रिपाठी को जवाब आया कि उत्तराखंड के 100 शहरी स्थानीय निकायों में से केवल नौ स्थानीय निकायों ने तीन वर्षों में 50,000 रुपये से ज़्यादा की चालान धनराशि जुटाई। 39 तो ऐसे शहरी स्थानीय निकाय निकले जिन्होने शून्य चालान किए।