यह बात अब अंदाज नहीं रह गई कि कभी मंगल पर पानी खुली सतह पर बहा और झीलों में लहरें उठीं। NASA के क्यूरियोसिटी रोवर ने गेल क्रेटर के भीतर ऐसी सूक्ष्म तरंग-छापें (रिपल्स) दर्ज की हैं जो धरती की उथली झीलों में हवा से बनने वाले पैटर्न से हूबहू मेल खाती हैं। ये निशान 2022 में दिखे थे, मगर उनकी बारीकी से माप और मॉडलिंग के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि 3.7 अरब साल पहले मंगल पर एक उथली झील थी, जिसकी सतह पर हवा ने लहरें पैदा कीं और वही लहरें बाद में पत्थर में जम गईं।
यह खोज इसलिए भी अहम है क्योंकि यह सीधे-सीधे बताती है कि उस समय मंगल की सतह पर तरल पानी लंबे समय तक स्थिर रहा, और वह पानी खुले वातावरण (ओपन एयर) के संपर्क में था—यानी ऊपर से हवा बह रही थी और नीचे पानी था। पहले यह मानना सुरक्षित था कि प्राचीन मंगल बहुत ठंडा और सूखा रहा होगा, जहाँ पानी अगर दिखा भी, तो वह ज्यादातर बर्फ या बहुत थोड़े समय के लिए रहा। मगर तरंग-छापों का यह सेट उस कहानी को बदल देता है।
गेल क्रेटर—लगभग 154 किलोमीटर चौड़ा—एक ऐसा प्राकृतिक कटोरा है जिसमें परत-दर-परत जमा चट्टानें मंगल के जलवायु इतिहास को पढ़ने का मौका देती हैं। क्रेटर के बीचोंबीच उठा हुआ ‘माउंट शार्प’ (एओलिस मॉन्स) किसी किताब के खुले पन्नों की तरह है, जहाँ निचली परतें पुरानी और ऊपर की परतें अपेक्षाकृत नई हैं। क्यूरियोसिटी 2012 से यहाँ चढ़ाई करते हुए अलग-अलग परतों का अध्ययन कर रहा है।
वैज्ञानिकों ने जिन तरंग-छापों को मापा, वे दो अलग-अलग सेट में दिखीं—दोनों के उभार लगभग छह मिलीमीटर के और उनकी दूरी करीब 4–5 सेंटीमीटर। यह सूक्ष्म ज्यामिति साधारण नहीं है; इससे पता चलता है कि पानी की सतह पर हवा के झोंकों ने स्थिर, दोहरावदार लहरें खड़ी कीं, जो उथले पानी के तल तक महसूस हुईं और तलछट पर एक खास पैटर्न छोड़ गईं। बाद में यही तलछट पत्थर बनी और पैटर्न स्थायी हो गया।
कंप्यूटर मॉडलिंग से टीम ने अनुमान लगाया कि झील की गहराई औसतन उथली रही—अधिकतम करीब 2 मीटर। ऐसी स्थिति में लहरों की तरंग-लंबाई और ऊँचाई में स्थिरता तभी आती है जब ऊपर हवा लगातार और एक दिशा में बहती रहे, और पानी सतह पर ठहरा हुआ हो। तलछट-विज्ञान (सेडिमेंटोलॉजी) में इस तरह की सममित तरंग-छापें wave-dominated सेटिंग का संकेत देती हैं, जबकि धारा (current) से बनने वाली ripples आमतौर पर असममित होती हैं। यहाँ जो मिला, वह स्पष्ट तौर पर हवा से बनी सतही लहरों का मामला है।
डेटा का सार इस तरह समझें:
क्यूरियोसिटी ने इन बनावटों की तस्वीरें और सूक्ष्म क्लोज-अप MAHLI कैमरे से लिए, जबकि Mastcam की मदद से उनकी व्यापक संदर्भ छवियाँ मिलीं। इसके बाद मॉडलिंग से लहरों का पैटर्न, हवा की दिशा और पानी की गहराई का आकलन किया गया। शोध टीम के मुताबिक यह पैटर्न तभी बन सकता है जब पानी खुली सतह पर रहा हो और उस पर हवा का असर सीधे पड़ा हो।
दिलचस्प यह भी है कि दो सेट अलग-अलग समय पर बने दिखते हैं। यानी वहाँ पानी और हवा की अनुकूल स्थिति एक बार से ज्यादा लौटी—या फिर अनुकूल मौसम बहुत लंबे समय तक कायम रहा। दोनों बातें मंगल के लिए बड़ी हैं, क्योंकि इसका मतलब है कि ग्रह का माहौल उस वक्त घना और गर्म रहा होगा; इतना कि पानी सतह पर स्थिर रह सके।
खुली सतह पर स्थिर पानी का मतलब है कि तब मंगल का वातावरण आज की तुलना में कहीं ज्यादा घना रहा—ऐसा वातावरण जो गर्मी रोककर रख सके और पानी को उबालने या जमने से बचा सके। आज का मंगल बेहद पतले वातावरण (करीब 6–7 मिलीबार) के साथ ठंडा और शुष्क है; वहाँ पानी तुरंत वाष्पित या जम जाता है। पुरानी झील का यह प्रमाण बताता है कि अतीत में ग्रीनहाउस गैसें (मुख्यतः CO₂, संभवतः कुछ H₂) ज्यादा थीं और सौर विकिरण के बावजूद सतह का तापमान शून्य से ऊपर टिक सका।
यह सवाल भी उठता है कि वह घना वातावरण गया कहाँ? NASA के MAVEN मिशन ने वर्षों से दिखाया है कि मंगल से वायुमंडलीय गैसें सौर पवन के असर से अंतरिक्ष में भागती रहीं। क्यूरियोसिटी के SAM उपकरण ने हाइड्रोजन के भारी-हल्के समस्थानिक अनुपात (D/H) में बदलाव दर्ज किए हैं, जो बताता है कि समय के साथ पानी का बड़ा हिस्सा स्पेस में खो गया। जब ग्रह की आंतरिक चुंबकीय ढाल कमजोर हुई, तो सौर पवन ने वातावरण को धीरे-धीरे छील दिया—और झीलों-नदियों वाला दौर खत्म होता गया।
जीवन-योग्यता पर असर सीधे हैं। जहाँ पानी लंबे समय तक ठहरा, वहाँ रसायन, ऊर्जा और समय—तीनों मिलते हैं। गेल क्रेटर में क्यूरियोसिटी पहले भी महीन कणों वाली मिट्टी (मडस्टोन), मिट्टी के खनिज (क्ले), और सल्फेट जैसी परतों का पता लगा चुकी है—ये सब शांत झील-जैसी परिस्थितियों के संकेत हैं। अब हवा से बनी लहरों के ठोस सबूत उस कहानी में समय की परत जोड़ते हैं। जितना लंबा समय, उतना ज्यादा अवसर कि सूक्ष्म जीवन के संकेत बनें और संरक्षित रहें।
यह खोज हाल की दूसरी सुर्खियों से भी मेल खाती है। जेज़ेरो क्रेटर में काम कर रहे पर्सेवरेंस रोवर ने 2024 में ‘Cheyava Falls’ नाम की चट्टान से लिया एक नमूना रिपोर्ट किया, जिसमें ऐसे रसायन मिलते हैं जो संभावित जैव-हस्ताक्षर हो सकते हैं। यह दावा पक्का नहीं—अंतिम पुष्टि के लिए प्रयोगशाला विश्लेषण जरूरी है—पर संकेत उत्साहजनक हैं। यही वजह है कि ‘मार्स सैंपल रिटर्न’ को वैज्ञानिक प्राथमिकता मानते हैं; असली जवाब धरती की उन्नत लैब्स ही दे पाएंगी।
क्यूरियोसिटी खुद भी मायने रखने वाली बनावटें दिखा रहा है। हाल में उसने बॉक्सवर्क जैसी कठोर रेखीय रियाँ खोजीं—ऐसी जालीनुमा संरचनाएँ जो अक्सर तब बनती हैं जब भूमिगत पानी खनिज घोलकर cracks में भरता है, फिर आसपास की नरम चट्टान घिस जाती है और कड़ा खनिज जाल बचता है। कुछ जगहों पर ‘कोरल’ जैसे दिखने वाले उभार भी दिखे—असल में यह खनिज-समृद्ध जल के सूखने से बनी आकृतियाँ हैं। ये सब मिलकर बताते हैं कि पानी केवल सतह पर नहीं, अंदर भी लंबे समय तक घूमता रहा।
तरंग-छापों से वैज्ञानिक क्या-क्या निकालते हैं? धरती पर हम झीलों में ripples की ऊँचाई और अंतर से हवा की ताकत, दिशा और जल-गहराई का अनुमान लगाते हैं। मंगल पर भी वही सिद्धांत लागू हुए। छह मिलीमीटर की ऊँचाई और 4–5 सेमी का अंतर उथले पानी और अपेक्षाकृत शांत, पर स्थिर हवा की ओर इशारा करता है—ऐसी हवा जो मिनटों नहीं, महीनों-बरसों तक औसतन बनी रही होगी, ताकि पैटर्न बार-बार दोहरकर जम सके।
शोध टीम की एक और अहम बात यह है कि दोनों सेट अलग कालखंडों के लगते हैं। इसका सरल मतलब: या तो मंगल बहुत लंबे वक्त तक सतह पर पानी सँभाल पाया, या फिर घने वातावरण और गर्म हालात कई बार लौटे। दोनों ही स्थितियाँ माइक्रोबियल जीवन के लिए खिड़की बड़ी करती हैं। क्योंकि जीवन को केवल पानी नहीं, स्थिरता भी चाहिए—वक्फे जहाँ वह पनप सके, बदले, और अपने निशान छोड़ सके।
गेल क्रेटर क्यों खास? क्योंकि यह एक बंद बेसिन था जहाँ आने वाली नदियाँ तलछट जमा करती रहीं। क्रेटर का चौड़ा ‘फेच’ (हवा के बहने की खुली दूरी) लहरें पैदा करने के लिए पर्याप्त था। उथली झीलों में तरंगें तल तक महसूस होती हैं और तलछट पर सममित ripples बनती हैं—ठीक वैसी ही जैसे यहाँ दिखीं। धरती पर इसके अच्छे सांचे हमें राजस्थान की खारे झीलों, कच्छ के ज्वारीय सपाटों या अमेरिका के सूखे झील-तलों में मिलते हैं। यही तुलनाएँ मंगल के डेटा को समझने में काम आती हैं।
इस खोज के साथ एक बड़ा जलवायु-पैटर्न उभरता है। पहले के अध्ययनों में ध्रुवों पर बर्फ, पतले वातावरण में जल-वाष्प और कुछ गहराई पर संभावित खारे द्रव जल-भंडार के संकेत मिले हैं। कुछ रडार अध्ययनों ने उप-हिम झीलों की चर्चा भी की है, जिन पर अभी बहस जारी है। इनसाइट लैंडर ने सीधे पानी नहीं देखा, पर उसके भूकंपीय डेटा से भूपर्पटी और मेंटल के गुण समझे गए—जिन्होंने भू-जल चक्र और ऊष्मा-प्रवाह की तस्वीर साफ की। यकीनन, पानी मंगल की कहानी में हर जगह है—सतह पर, बर्फ में, खनिजों के भीतर, और शायद गहराई में भी।
तकनीकी नजर से देखें तो यह उपलब्धि क्यूरियोसिटी के उपकरणों की उम्र और मजबूती का भी सबूत है। 2012 में उतरा यह रोवर रेडियोआइसोटोप पावर सिस्टम (RTG) से चलता है, यानी सर्द रातें और धूल भरी आंधियाँ भी इसे रोक नहीं पाईं। Mastcam, ChemCam, SAM, CheMin, MAHLI और DAN जैसे उपकरणों ने मिट्टी-चट्टान की रसायन, खनिज, बनावट और हाइड्रोजन-सम्बंधित संकेतों की पूरी प्रोफ़ाइल खींची। यही विस्तृत नजर बार-बार अनदेखे पैटर्न पकड़ लेती है—जैसे यह तरंग-छापें।
अब आगे क्या? क्यूरियोसिटी माउंट शार्प की ऊँची सल्फेट-समृद्ध परतों की ओर बढ़ रहा है, जहाँ वातावरण के पतले होने और सूखेपन के बढ़ने के संकेत मिलने चाहिए। जेज़ेरो में पर्सेवरेंस डेल्टा के महीन कणों में बंद संभावित जैव-हस्ताक्षरों के और नमूने जुटा रहा है। उधर, मार्स सैंपल रिटर्न की योजना बजट और डिजाइन के फेरबदल से गुजर रही है—मगर वैज्ञानिक समुदाय लगभग एकमत है कि असली निर्णायक साक्ष्य धरती की लैबों में ही मिलेंगे।
एक और परत जो यह खोज जोड़ती है, वह है समय-रेखा। अगर तरंग-छापें दो अलग अवधियों की हैं, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि मंगल ने या तो लंबा गर्म और नम दौर देखा, या ऐसे दौर कई बार लौटे। जल-रसायन, खनिजों में बंद सूक्ष्म कार्बनिक अणु, और तलछट की परतों का क्रम—ये सब मिलकर एक ऐसी इतिहास-पुस्तक बनाते हैं जिसकी हर पृष्ठ पर पानी की स्याही लगी है।
अंत में सवाल वही बड़ा: क्या वहाँ जीवन था? इस खोज का ईमानदार जवाब है—शायद के तरफ एक ठोस कदम। जहाँ उथली, स्थिर झीलें हैं, वहाँ जैव-रसायन को काम करने का मौका मिलता है। अगर माइक्रोब्स कभी मंगल पर हुए, तो ऐसे ही माहौल में उनके चिन्ह—जैसे कार्बोनेट परतें, विशिष्ट समस्थानिक हस्ताक्षर, या सूक्ष्म संरचनाएँ—पत्थरों में बंद हो सकते हैं। अब चुनौती यह है कि हम उन पत्थरों तक पहुँचे, उनके नमूने धरती लाएँ, और बिना जल्दबाजी के उन्हें पढ़ें।
क्यूरियोसिटी की यह खोज मंगल को एक और बार रहने लायक, पानी-बहता संसार दिखाती है—एक ऐसा समय जब हवा लहरों से खेलती थी और झील का तल उन खेलों की कहानी सँभाल रहा था। मंगल आज ठंडा, पतला और धुंधला है—पर उसकी चट्टानों में जमा यादें कहती हैं कि वह कभी अलग था। और शायद, उस अलग समय में, जीवन की संभावना उतनी ही सच्ची थी जितनी धरती पर उसके शुरुआती दिन।
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