कोरोना से जब मैदान त्रस्त थे। तब लोगो का भारी संख्या में पहाड़ो पर पलायन हुआ। कारण था कि तब तक पहाड़ो में इस महामारी ने अपने पाँव नहीं पसारे थे। उनमे मजदूर, श्रमिक, छोटी – नौकरियों में लगे सभी लोग शामिल थे। कहाँ तो पहाड़ पलायन के कारण खाली हो रहे थे, लेकिन लोगो की भारी वापसी से फिर आबादी बढ़ने लगी। ऐसे में कई दुर्गम इलाके ऐसे थे जहाँ साधनों व् संसाधनों की कमी थी। महामारी के चलते, रोज़गार की कमी के कारण लोगो को भोजन की समस्या का सामना करना पड़ा।
महामारी की मार और गरीबी व् बेरोज़गारी की दोहरी मार, पहाड़ो की दुर्गमता के कारण, जब लोगो का रहना वहां बेहाल हुआ तो महिला उत्थान एवं बाल कल्याण, उत्तराखंड ने रुख किया उत्तराखंड के दुर्गम इलाको की ओर। ट्रको से भारी मात्रा में खाने पीने व रोज़मर्रा की ज़रुरतो का सामान ज़रूरतमंदों को मुहैया करवाया जाने लगा।
फिर चाहे वो देहरादून, हरिद्वार जैसे सुगम इलाके हो या डूमाकोट जैरिखाल, लैंसडाउन व कोटद्वार के दुर्गम क्षेत्र। जब लोग सहायता देने के साथ मीडिया, समाचार व् सम्मान समारोहों की ओर रूचि ले रहे थे। तब महिला उत्थान एवं बाल कल्याण की अध्यक्षा अनुकृति गोसाईं अपने कर्मवीर सिपाहियों के साथ इन सबसे दूर दिन रात उत्तराखंड के अपने ज़रूरतमंद भाई-बहनों के बीच, उनके इन कठिन पलो में उनके साथ हर पल मौजूद थी। आटा, चावल, दालें, तेल, मसाले, आदि खाने के सामान से लेकर उनके दैनिक नित्यकर्मो , महिलाओं की निजी ज़रूरत के सामान की भी सप्लाई नियमित होती थी।
संस्था की अध्यक्षा अनुकृति गोसाईं का मानना हैं पहाड़ी लोग खुद्दार व मेहनती होते हैं, उन्हें मेहनत मशक्कत करना मंज़ूर हैं लेकिन हाथ फैलाना नहीं। अतः ज़रूरत थी कि उनके परिवार का हिस्सा बनकर उनकी मदद की जाये ताकि उनका आत्मसम्मान भी बरकरार रहे और उनकी सहायता भी हो सके। वह एक बेटी व बहन के रूप में स्वयं खड़ी हो कर उन्हें मदद मुहैय्या करवाती तथा परस्पर वार्तालाप करके उनकी पीड़ा में मरहम लगाने का कार्य भी करती।
संस्था का मकसद किसी प्रकार की वाहवाही लूटना, सम्मान समारोहों में शिरकत करना न हो कर, सतही तौर पर अपने ज़रूरतमंद भाई बहनों की मदद करना था और संस्था को संतुष्टि है कि वो इस कार्य में काफी हद तक सफल हो पाएं हैं।